हवाओं का रुख बदलने की चाह रखता हूँ,
मैं गैरों को भी अपनाने का हुनर रखता हूँ।
मिट जाए जो हस्ती आह से किसी अनजान की,
इतनी फीकी सी हस्ती मैं नहीं रखता हूँ ।
सच्चाई के मुखौटे पहन जो हैं बेगैरत यहां पर,
ऐसे बेगैरतों को मिटाने का हुनर भी रखता हूँ।
तू चाहे लाख करले कोशिशें बहलाने की,
तेरी इक इक रुसवाई का हिसाब रखता हूँ।
तुझे बेशक याद न हों वो दुर्गम पथ के कांटे,
मगर तेरे हर एक कांटे का ख्याल रखता हूँ।
मेरे इस मौन को मत समझ लेना कसूर,
तेरी हर सांस पर पैनी नजर मैं रखता हूँ।
-भड़ोल