Wednesday, May 1, 2019

नज़र

हवाओं का रुख बदलने की चाह रखता हूँ,
मैं गैरों को भी अपनाने का हुनर रखता हूँ।

मिट जाए जो हस्ती आह से किसी अनजान की,
इतनी फीकी सी हस्ती मैं नहीं रखता हूँ ।

सच्चाई के मुखौटे पहन जो हैं बेगैरत यहां पर,
ऐसे बेगैरतों को मिटाने का हुनर भी रखता हूँ।

तू चाहे लाख करले कोशिशें बहलाने की,
तेरी इक इक रुसवाई का हिसाब रखता हूँ।

तुझे बेशक याद न हों वो दुर्गम पथ के कांटे,
मगर तेरे हर एक कांटे का ख्याल रखता हूँ।

मेरे इस मौन को मत समझ लेना कसूर,
तेरी हर सांस पर पैनी नजर मैं रखता हूँ।

-भड़ोल

Saturday, May 19, 2018

ज़हमत

मिलने की उसने ज़हमत न उठाई,
पास रहकर भी वो पास न आई ।

गुजर गए वो लमहात तन्हाई में ,
दिल मे रहते हुए भी वो पास न आई ।

कितने ही बसन्त थे जो गुज़र गए ,
मुलाकात पे उसने वो कहानी न बताई ।

सिमट गई वो जब मिली अकेले में,
उसने हालात पर नज़र भी न दौड़ाई ।

रुसवाई इस कदर थी उस जमाने में,
मिलकर भी मिल न सकी वो ज़माने में ।

भूलना भी चाहा मगर भुला न सकी,
यादों के उजाले में वो आ न सकी ।

-भड़ोल

Wednesday, May 2, 2018

सिस्टम

सरकारी बातें अब निम्न हो गई हैं,
फाइलों की बातें अब भिन्न हो गई हैं ।

सिस्टम जो बदले वो फूल हो गया है,
काम को घसीटना अब असूल हो गया है ।

सरकारी नौकर किसी काम का न छोड़ा,
फिट है वो सिस्टम में जो है सिर्फ भगौड़ा ।

गलतियां भी शायद अब आम हो गयी हैं,
गलत काम करवाने की होड़ हो गयी है ।

काम के संदेश अब व्हाटसअप पर हैं आते,
जवाब साहिब को, पर लिखित में ही भाते ।

सरकारी मुलाज़िम जब काम पे है जाता,
वापिस लौट आने तक परिवार है झन्नाता ।

"शैल" की कुर्बानी यूं व्यर्थ न जाएगी,
एक न एक दिन सिस्टम को जाग आएगी।

-भड़ोल

Thursday, April 5, 2018

जय OPS

पेंशन बहाली तो हमारे हक समान है,
इसको पाने में लोगों ने दी अपनी जान है।

ताउम्र समर्पण के बाद हक हम ये पाते हैं,
फिर भी इसको न देने में रोज़ नए बहाने हैं।

सीमित संसाधनों की बात हमने मानी है,
पर नेताओं के लिए, ये बात क्यों बेमानी है?

भारतीय संविधान की,गरिमा का बलिदान है,
नेताओं के फायदे में ही,बस सब कुछ कुर्बान है ।

हक को पाने में देनी पड़ती कुर्बानी है,
इतिहास के पन्नो ने भी यह बात मानी है ।

रात्रि के अंधेरे के बाद ही आता उजाला है,
उठो, जागो,आगे बढ़ो ये हक हमने पाना है ।

-भड़ोल





Saturday, March 24, 2018

फलसफा

ज़िन्दगी का फलसफा ढूंढ रहा हूँ,
मैं अब तक मंज़िल को ढूंढ रहा हूँ ।

राह में मिले साहिल जो अब तलक,
उन साहिलों को आज मैं ढूंढ रहा हूँ ।

कितने ही हमसफ़र थे उमंगई राह में,
उस हमसफ़र को आज मैं ढूंढ रहा हूँ ।

खाई थी जिसने कसमें यारी निभाने की,
उन यारों को आज मैं ढूंढ रहा हूँ ।

हर एक आह पर जो बन गए बधिर,
उन बधिरों को आज मैं ढूंढ रहा हूँ ।

मैं थक चुका हूँ पर अबतलक,
पर मंज़िल को ढूंढ रहा हूँ ।

-भड़ोल

मंज़िल

जी चाहता है झूम लूँ, हर ग़म को भूल लूँ ।
ज़िन्दगी की राह में, हर मुकाम चूम लूँ ।

आसां नहीं है राह ये,हर मोड़ पर अंजान हैं,
मंज़िल पाने का पथ ये अब नहीं आसान है।

होश में आया मैं, जब मिले वो पथिक मुझे,
खून पसीने से तर बतर, उस राह पर वो अग्रसर ।

उठना अगर मैं सीख लूँ, झुकना अगर मैं सीख लूँ,
ज़िन्दगी की हर राह पर, रोज़ नई मैं सीख लूँ ।

मुश्किल है सफर और राह भी अनजान है,
मिल ही जाएगी वो डगर जिस राह पर भगवान हैं ।

अरमां लिए इस दिल में कुछ करने की ठान है,
नेक बंदों के लिए कुछ करने का अरमान है ।

फड़फड़ा के एक न एक दिन मंजिल पा ही लूंगा मैं,
हौंसला हो न हो पर, पार पा ही लूंगा मैं।

-भड़ोल




ईमान

कोई हनी कोई मनी के ट्रैप में फसा है,
नीरव के हाथ में माल मोटा लगा है ।

माल्या भी मोटा चूना लगा गया है,
पिसने के लिए आम आदमी खड़ा है ।

ड्रैगन से देश को खतरा बढा है,
पाक का ईमान रोज़ ही ढला है ।

कमाने का ढंग भी, बदल सा गया है,
मेहनत वालों को कहते अब 'गधा' है।

ईमान की नस्ल अब, लुप्त हो रही है ।
मोटी मोटी डीलें, अब गुप्त हो रही हैं ।

-भड़ोल