मिलने की उसने ज़हमत न उठाई,
पास रहकर भी वो पास न आई ।
गुजर गए वो लमहात तन्हाई में ,
दिल मे रहते हुए भी वो पास न आई ।
कितने ही बसन्त थे जो गुज़र गए ,
मुलाकात पे उसने वो कहानी न बताई ।
सिमट गई वो जब मिली अकेले में,
उसने हालात पर नज़र भी न दौड़ाई ।
रुसवाई इस कदर थी उस जमाने में,
मिलकर भी मिल न सकी वो ज़माने में ।
भूलना भी चाहा मगर भुला न सकी,
यादों के उजाले में वो आ न सकी ।
-भड़ोल