Saturday, May 19, 2018

ज़हमत

मिलने की उसने ज़हमत न उठाई,
पास रहकर भी वो पास न आई ।

गुजर गए वो लमहात तन्हाई में ,
दिल मे रहते हुए भी वो पास न आई ।

कितने ही बसन्त थे जो गुज़र गए ,
मुलाकात पे उसने वो कहानी न बताई ।

सिमट गई वो जब मिली अकेले में,
उसने हालात पर नज़र भी न दौड़ाई ।

रुसवाई इस कदर थी उस जमाने में,
मिलकर भी मिल न सकी वो ज़माने में ।

भूलना भी चाहा मगर भुला न सकी,
यादों के उजाले में वो आ न सकी ।

-भड़ोल

Wednesday, May 2, 2018

सिस्टम

सरकारी बातें अब निम्न हो गई हैं,
फाइलों की बातें अब भिन्न हो गई हैं ।

सिस्टम जो बदले वो फूल हो गया है,
काम को घसीटना अब असूल हो गया है ।

सरकारी नौकर किसी काम का न छोड़ा,
फिट है वो सिस्टम में जो है सिर्फ भगौड़ा ।

गलतियां भी शायद अब आम हो गयी हैं,
गलत काम करवाने की होड़ हो गयी है ।

काम के संदेश अब व्हाटसअप पर हैं आते,
जवाब साहिब को, पर लिखित में ही भाते ।

सरकारी मुलाज़िम जब काम पे है जाता,
वापिस लौट आने तक परिवार है झन्नाता ।

"शैल" की कुर्बानी यूं व्यर्थ न जाएगी,
एक न एक दिन सिस्टम को जाग आएगी।

-भड़ोल

Thursday, April 5, 2018

जय OPS

पेंशन बहाली तो हमारे हक समान है,
इसको पाने में लोगों ने दी अपनी जान है।

ताउम्र समर्पण के बाद हक हम ये पाते हैं,
फिर भी इसको न देने में रोज़ नए बहाने हैं।

सीमित संसाधनों की बात हमने मानी है,
पर नेताओं के लिए, ये बात क्यों बेमानी है?

भारतीय संविधान की,गरिमा का बलिदान है,
नेताओं के फायदे में ही,बस सब कुछ कुर्बान है ।

हक को पाने में देनी पड़ती कुर्बानी है,
इतिहास के पन्नो ने भी यह बात मानी है ।

रात्रि के अंधेरे के बाद ही आता उजाला है,
उठो, जागो,आगे बढ़ो ये हक हमने पाना है ।

-भड़ोल





Saturday, March 24, 2018

फलसफा

ज़िन्दगी का फलसफा ढूंढ रहा हूँ,
मैं अब तक मंज़िल को ढूंढ रहा हूँ ।

राह में मिले साहिल जो अब तलक,
उन साहिलों को आज मैं ढूंढ रहा हूँ ।

कितने ही हमसफ़र थे उमंगई राह में,
उस हमसफ़र को आज मैं ढूंढ रहा हूँ ।

खाई थी जिसने कसमें यारी निभाने की,
उन यारों को आज मैं ढूंढ रहा हूँ ।

हर एक आह पर जो बन गए बधिर,
उन बधिरों को आज मैं ढूंढ रहा हूँ ।

मैं थक चुका हूँ पर अबतलक,
पर मंज़िल को ढूंढ रहा हूँ ।

-भड़ोल

मंज़िल

जी चाहता है झूम लूँ, हर ग़म को भूल लूँ ।
ज़िन्दगी की राह में, हर मुकाम चूम लूँ ।

आसां नहीं है राह ये,हर मोड़ पर अंजान हैं,
मंज़िल पाने का पथ ये अब नहीं आसान है।

होश में आया मैं, जब मिले वो पथिक मुझे,
खून पसीने से तर बतर, उस राह पर वो अग्रसर ।

उठना अगर मैं सीख लूँ, झुकना अगर मैं सीख लूँ,
ज़िन्दगी की हर राह पर, रोज़ नई मैं सीख लूँ ।

मुश्किल है सफर और राह भी अनजान है,
मिल ही जाएगी वो डगर जिस राह पर भगवान हैं ।

अरमां लिए इस दिल में कुछ करने की ठान है,
नेक बंदों के लिए कुछ करने का अरमान है ।

फड़फड़ा के एक न एक दिन मंजिल पा ही लूंगा मैं,
हौंसला हो न हो पर, पार पा ही लूंगा मैं।

-भड़ोल




ईमान

कोई हनी कोई मनी के ट्रैप में फसा है,
नीरव के हाथ में माल मोटा लगा है ।

माल्या भी मोटा चूना लगा गया है,
पिसने के लिए आम आदमी खड़ा है ।

ड्रैगन से देश को खतरा बढा है,
पाक का ईमान रोज़ ही ढला है ।

कमाने का ढंग भी, बदल सा गया है,
मेहनत वालों को कहते अब 'गधा' है।

ईमान की नस्ल अब, लुप्त हो रही है ।
मोटी मोटी डीलें, अब गुप्त हो रही हैं ।

-भड़ोल

नमन

जलने वालों को नमन है, हौंसला वो देते हैं,
आगे बढ़ने के लिए, एक वजह सी देते हैं ।

पीठ पीछे चुगलियों का, मज़ा वो लेते हैं,
सामने आते ही वो ,झट पलट लेते हैं ।

जब हो जाए चुगली बेकार, फिर जात सामने आती है,
एक न एक दिन, कमीनों की औकात सामने आती है।

भूल जाते हैं अक्सर ज़िन्दगी की सच्चाई,
खाना पड़ता है वही जिसकी की हो बुआई ।

सच का रंग अब फीका सा होता जा रहा है,
हंस को छोड़ के कौआ ही मोती खा रहा है।

बुरे वक्त में जीने की कला तुम सीख लो,
बीत जाएंगे वो भी दिन, इस बात से तुम सीख लो।

-भड़ोल








पड़ोसी

सीज़फायर वायलेशन अब आम हो गई है,
पाकिस्तान की जुर्रत शरेआम हो गई है ।

घर में नही निवाला और खीर चाहते हैं,
पख्तून नहीं सम्भलता और कश्मीर चाहते हैं?

कई बार मुहँ की खाई पर चैन न है आई,
बेशर्मी की हदों को भी पार कर चुके हैं ।

रोज़ हैं नया एक बाप ढूंढते रहते,
अब तलक है अपनी औकात ढूंढते रहते ।

न्यूक्लिअर पावर की धौंस है जमाता,
चीन के आगे, है रोज़ गिड़गिड़ाता ।

हिल चुका है अब तक, कई बार मुहँ की खाकर,
पर अक्ल न है आयी, नाक भी कटवा कर ।

दूसरों के पल्लू में कब तलक छुपोगे,
हम भड़क गए तो नज़र नहीं आओगे ।

-भड़ोल

भेड़िये

दोपहर की धूप में देखा उसे चलते हुए,
राह चलते भेडियों की आंख से बचते हुए।

सहमी सहमी चल रही भीड़ से छुपते हुए,
सोचती सी जा रही थी मन ही मन कुढ़ते हुए।

नारी को विवश है देखा हर तरफ संसार में,
किस-2 को जवाब दे वो इस कुटिल संसार में।

हाँ वो मां है, हाँ वो बेटी, इस पुलकित संसार में,
अग्निपरिक्षा देते आई है वो अनन्त काल से ।

विचित्र रूप हैं देखें उसने, परम पुरुषार्थ के,
कभी देविय रूप में, कभी चांडालिय अवतार में।

सोचती है कचोटती है, हर आह पर वो सोचती है,
भेज कर धरती पे प्रभु ने, क्या कोई उपकार किया?

समाज की बेड़ियों से, अब उसे तुम मुक्ति दो,
या जन्म लेने से पहले, कोख में ही मार दो ।

- भड़ोल

हाँ मैं पशु चिकित्सक हूँ

जो मात्र मिस्ड कॉल पर, गौशाला पहुंच जाता,
हां वो पशु चिकित्सक है कहलाता ।

गरीबों का साथी जो हमेशा ड्यूटी पे पाया जाता,
हां वो पशु चिकित्सक है कहलाता ।

न इन्क्रीमेंट का लालच, न बहाना बना पाता ,
हां वो पशु चिकित्सक है कहलाता ।

फीड, सीड औऱ चिक्स बोझ तले जो दब जाता,
हां वो पशु चिकित्सक है कहलाता ।

सरकारी स्कीमों को जो घर घर पहुंचाता,
हां वो पशु चिकित्सक है कहलाता ।

सर्जरी, गायनी और मेडिसीन में जो पिस जाता,
हां वो पशु चिकित्सक है कहलाता ।

शून्य सुविधाओं के अभाव में जिया जाता,
हां वो पशु चिकित्सक है कहलाता ।

डाटा एंट्री ऑपरेटर का रोल निभाता,
हां वो पशु चिकित्सक है कहलाता ।

जिस की पीठ कोई न थपथपाता,
हां वो पशु चिकित्सक है कहलाता ।

कोई गिला या शिकवा टस से मस न कर पाता,
दृढ़ निश्चय से जो है जिया जाता,
हां इसलिए ही वो पशु चिकित्सक है कहलाता ।

-भड़ोल

हाँ वो बीमार है


बात को समझे नहीं , तर्क उसके बेकार है,
हाँ वो बीमार है ।

मिला था मुझे वो बर्फीले तूफान में,
देश की रक्षा का भूत उसपे सवार है,
हाँ वो बीमार है ।

बूढ़ी माँ उसकी , घर पर बीमार है,
पर सरहद पर जाने का भूत उसपे सवार है,
हाँ वो बीमार है ।

दुश्मनों को मार दूंगा, हर वक्त वो तैयार है,
राष्ट्र की पावन धरा का सिपहसिलार है,
हाँ वो बीमार है ।

न मांगे वो बंगला गाड़ी, न उसे दरकार है,
राष्ट्रध्वज का मान रखने का उसे सरोकार है,
हाँ वो बीमार है ।

अमन शांति रहे देश में, कुर्बानी को वो तैयार है,
हर आह राष्ट्र पर मिटे, उसका हम पर उपकार है।
हाँ वो बीमार है ।

-भड़ोल

ठेकेदार

बचालो मुझे इन देश के ठेकेदारों से,
भ्रष्ट , दुष्ट, तुगलकी गद्दारों से ।

न पिज़्ज़ा हम खाएं, न पिक्चर दिखाएं,
एलोवेरा खा कर कब तक भूख मिटाएं?

राष्ट्रभक्ति और टॉलेरेंस का पाठ पढ़ा के,
किए जा रहे मुल्क को आग के हवाले ।

धर्म के नाम पर अधर्म किए जा रहे हैं,
मेरे मुल्क को पथभ्रष्ट किए जा रहे हैं ।

लाल और पाल की इस पावन धरा को,
रहने दो न बांटो मेरे मुल्क को गद्दारो ।

-भड़ोल

बेबस

ज़िन्दगी की दौड़ में बस सी हो गयी है,
अब तो हर आह बेबस सी हो गयी है ।

थकना नहीं मैं चाहता पर हद हो गई है,
अब वक्त बेवक्त दर्द, बेदर्द हो गई है ।

कश्मकश में अब ये,दिन निकल रहे हैं,
बेबाक थी जवानी अब दिन गिन रहे हैं ।

किस ओर मैं चला था, किस ओर अब मैं जाऊं,
किस बात से था मतलब, अब क्या क्या निभाऊं ?

परछाइयाँ भी मेरी अब दूर जा रही हैं,
तन्हाइयां अब मेरे करीब आ रही हैं ।

रुकना "भड़ोल"भी चाहे, फिर भी रुक ना पाए,
इस बेलगाम दुनिया का, हमराह बन गया हूँ।

-भड़ोल







नासूर

मुलाकातों का सिलसिला नासूर हो गया,
गुनाह करके भी वो बेकसूर हो गया ।

चाहा था जिसे अपनी जान की तरह,
हमसे बिछड़ कर वो बहुत दूर हो गया।

इनायत यूँ रही खुदा की उस पर ,
हमसे बिछड़ कर वो मशहूर हो गया ।

उसकी सादगी पर फिदा था इस कदर,
भूलना चाहा मगर इश्क़ में मजबूर हो गया ।

मुलाकातों का सिलसिला नासूर हो गया ,
गुनाह करके भी वो बेकसूर हो गया ...

-भड़ोल

मेरा भारत महान हो रहा है।

गुल से गुलिस्तां हो रहा है,
मेरा भारत महान हो रहा है।

मज़हबी दंगो से परेशान हो रहा है,
मेरा भारत महान हो रहा है।

भुखमरी से परेशान हो रहा है,
मेरा भारत महान हो रहा है।

जाति में बंट कर महान हो रहा है,
मेरा भारत महान हो रहा है।

बेटी की इज़्ज़त रोज़ गवां रहा है,
मेरा भारत महान हो रहा है।

गरीब गरीबी में पिस्ता जा रहा है,
मेरा भारत महान हो रहा है।

फौजी रोज़ शहीद हो रहा है,
मेरा भारत महान हो रहा है।

दहशतगर्दी में मुल्क जी रहा है,
मेरा भारत महान हो रहा है।

ईमान की चद्दर फटी जा रही है,
मेरा भारत महान हो रहा है।

सियासत के फन को न फैलाओ इतना,
दिलो दिल से आमजन परेशान हो रहा है।

- भड़ोल