जलने वालों को नमन है, हौंसला वो देते हैं,
आगे बढ़ने के लिए, एक वजह सी देते हैं ।
पीठ पीछे चुगलियों का, मज़ा वो लेते हैं,
सामने आते ही वो ,झट पलट लेते हैं ।
जब हो जाए चुगली बेकार, फिर जात सामने आती है,
एक न एक दिन, कमीनों की औकात सामने आती है।
भूल जाते हैं अक्सर ज़िन्दगी की सच्चाई,
खाना पड़ता है वही जिसकी की हो बुआई ।
सच का रंग अब फीका सा होता जा रहा है,
हंस को छोड़ के कौआ ही मोती खा रहा है।
बुरे वक्त में जीने की कला तुम सीख लो,
बीत जाएंगे वो भी दिन, इस बात से तुम सीख लो।
-भड़ोल
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