ज़िन्दगी का फलसफा ढूंढ रहा हूँ,
मैं अब तक मंज़िल को ढूंढ रहा हूँ ।
राह में मिले साहिल जो अब तलक,
उन साहिलों को आज मैं ढूंढ रहा हूँ ।
कितने ही हमसफ़र थे उमंगई राह में,
उस हमसफ़र को आज मैं ढूंढ रहा हूँ ।
खाई थी जिसने कसमें यारी निभाने की,
उन यारों को आज मैं ढूंढ रहा हूँ ।
हर एक आह पर जो बन गए बधिर,
उन बधिरों को आज मैं ढूंढ रहा हूँ ।
मैं थक चुका हूँ पर अबतलक,
पर मंज़िल को ढूंढ रहा हूँ ।
-भड़ोल